मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग- 28

‘बस, इतनी-सी बात? लो पधारो। मैं चलती हूँ भोजन करनेके लिये। आपके मुख से भोजन का नाम सुनते ही जोर

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मीरा चरित भाग- 27

अपनी दशा को छिपाने के प्रयत्न में उसने सखियों की ओर से पीठ फेरकर भीत पर दोनों हाथों और सिर

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मीरा चरित भाग- 26

‘नहीं बेटा! पर वे मीरा के शिक्षा गुरु हैं, दीक्षा गुरु नहीं।’–दूदाजी ने उत्तर दिया।‘आप रुकिये न भाई!’- मीराने हँसकर

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मीरा चरित भाग-25

तुम्हारे गिरधर ही तुम्हारे रक्षक हैं। अभी डेढ़ महीना और रहूँगा यहाँ।’ मीराके एकादश वर्ष में प्रवेश के तीसरे ही

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मीरा चरित भाग- 24

मीरा के प्रभु गिरधर नागर।आय दरस धो सुख के सागर। आँखोंसे आँसुओंकी झड़ी लग गयी। सखियाँ उसे धीरज देनेके लिये

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मीरा चरित भाग- 20

मीरा हँस पड़ी- ‘ऐसा न करना हो। भगवान् धरती पर पधारते हैं तो उन्हें देखकर, छूकर, सुनकर, कैसे भी उनसे

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मीरा चरित भाग- 19

रह-रहकर उसके नेत्र अर्धनिमीलित हो जाते हैं। पुकारने पर वह उनकी ओर देखती तो है, किन्तु जैसे उस दृष्टिमें जीवन

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मीरा चरित * भाग-18*

‘कहीं दर्द होता है मीरा?’– दूदाजीने कहा—’वैद्यजीको बताओ।’ मीराकी समझमें नहीं आया कि क्या कहे। वह उठकर खड़ी हो गयी।

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*मीरा चरित* *भाग- 17*

‘अरे, यह क्या बावलापन है?’ माँने फिर समझानेका प्रयत्न किया ‘जा बाबोसासे पूछ, वे बतायेंगे। मैं कोई पुरुष हूँ कि

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मीरा चरित *भाग- 16*

राठौड़ वीर दूदाजी सचमुच बहुत भाग्यशाली थे। यौवनकालमें वे उद्भट योद्धा थे, अन्तः सलिला भक्ति-भागीरथी अब वार्धक्यमें जैसे कूल तोड़कर

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