
मीरा चरित भाग 30
‘हाँ हजूर ।’दासी ने आकर बताया कि स्नानकी सामग्री प्रस्तुत है। ‘मैं जाऊँ स्नान करने?’—उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से पूछा।‘पधारो।’-
‘हाँ हजूर ।’दासी ने आकर बताया कि स्नानकी सामग्री प्रस्तुत है। ‘मैं जाऊँ स्नान करने?’—उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से पूछा।‘पधारो।’-
मीरा ने एक बार और लौट जाना चाहा, किन्तु फूलाँ की जिद्द से विवश होकर वह साथ हो ली। यों
‘बस, इतनी-सी बात? लो पधारो। मैं चलती हूँ भोजन करनेके लिये। आपके मुख से भोजन का नाम सुनते ही जोर
अपनी दशा को छिपाने के प्रयत्न में उसने सखियों की ओर से पीठ फेरकर भीत पर दोनों हाथों और सिर
‘नहीं बेटा! पर वे मीरा के शिक्षा गुरु हैं, दीक्षा गुरु नहीं।’–दूदाजी ने उत्तर दिया।‘आप रुकिये न भाई!’- मीराने हँसकर
तुम्हारे गिरधर ही तुम्हारे रक्षक हैं। अभी डेढ़ महीना और रहूँगा यहाँ।’ मीराके एकादश वर्ष में प्रवेश के तीसरे ही
मीरा के प्रभु गिरधर नागर।आय दरस धो सुख के सागर। आँखोंसे आँसुओंकी झड़ी लग गयी। सखियाँ उसे धीरज देनेके लिये
मीरा हँस पड़ी- ‘ऐसा न करना हो। भगवान् धरती पर पधारते हैं तो उन्हें देखकर, छूकर, सुनकर, कैसे भी उनसे
रह-रहकर उसके नेत्र अर्धनिमीलित हो जाते हैं। पुकारने पर वह उनकी ओर देखती तो है, किन्तु जैसे उस दृष्टिमें जीवन
‘कहीं दर्द होता है मीरा?’– दूदाजीने कहा—’वैद्यजीको बताओ।’ मीराकी समझमें नहीं आया कि क्या कहे। वह उठकर खड़ी हो गयी।