हरि ॐ तत्सत, परमात्मा की खोज की
हरि ॐ तत्सत, इस संसार में जिस जिस ने परमात्मा की खोज की। सबके परमात्मा की खोज के मार्ग अलग
हरि ॐ तत्सत, इस संसार में जिस जिस ने परमात्मा की खोज की। सबके परमात्मा की खोज के मार्ग अलग
तुम मुझे देखा करो और मैं तुम्हें देखा करूँ हमारा मन वहीं लगता है, जहाँ हमारी अभिलाषित वस्तु होती है,
हमने जीवन में परम पिता परमात्मा के साथ सच्चा सम्बन्ध बनाना है क्योंकि जो हमारा जन्म जन्मानतर का सम्बन्धीं है।
प्रभु से बात दिल की गहराई से की जाती है। आंखें आंसू तभी बहाती है। जब परमात्मा से सम्बंध बन
परमात्मा को रात दिन सुबह शाम चलते हुए बैठे हुए खाते हुए, जल पीते हुए, सोऐ हुए, बाजारों में घुमते
जहाँ प्रेम है वहां प्रभु प्रेम की खोज प्रारम्भ होती है। वह किरया कर्म में परमात्मा को खोजता है। हे
जय श्री राम परमात्मा हममें समाया हुआ है। यह कहने मात्र से बात नहीं बनती है। जब तक भगवान को
भगवान् कहते हैं कि तु मुझे पत्थर की मूर्ति में ढुढेगा तो तेरा दिल पत्थर जैसा कठोर बन जाएगा जङ
परम पिता परमात्मा का चित से चिन्तन करते हुए आनंद मे वही डुब सकता है। जिसके दिल में परम पिता
आप किसी भी तरह परमात्मा का चिन्तन करे। मन न लगे तो परमात्मा का नाम माला लेकर करे। भजन कीर्तन