कृष्ण भजन (Krishna Bhajan)

बिरहन रोये आओ रे कन्हाई

ऋतु बसन्ती गूँजे रे कोयलियापहनूँ न प्रियतम आज पायलियाहर घुंघरू ने तेरी याद दिलाईबिरहन रोये……… बिरहन रोये आओ रे कन्हाईप्रियतम

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सनेही एक विहारी-विहारिनि।

सनेही एक विहारी-विहारिनि।एक प्रेम रुचि रचे परस्पर, अद्भुत भाँति निहारिनि॥तन सौं तन, मन सौं मन, अरुझ्यौ, अरुझनि वारनि-हारनि।यह छबि देखत

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खेलत मदन गोपाल बंसत ।

खेलत मदन गोपाल बंसत ।नागरि नवल रसिक-चूडामनि, सब बिधि रसिक राधिका कंत ॥नैन-नैन-प्रति चारु बिलोकनि, बदन-बदन-प्रति सुंदर हास ।अंग-अंग प्रति

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