इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।।
।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। सुनु कपीस अंगद लंकेसा।पावन पुरी रुचिर यह देसा।। जद्यपि
।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। सुनु कपीस अंगद लंकेसा।पावन पुरी रुचिर यह देसा।। जद्यपि
हे परमात्मा राम मै आपकी वन्दना करती हूं एक भक्त परमात्मा राम के भाव मे कैसे वन्दना करता है हे
शीश गंग अर्धग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥शीतल मन्द सुगन्ध पवन, बह बैठे हैं
शक्ति-शील-सौन्दर्य-सिन्धु तुम, दीन-बन्धु, करुणामय ।निर्बलके बल, प्रखर प्रभामय, त्रेताके सूर्योदय ।।नील कमल-सा वर्ण तुम्हारा, नयन सरोज लजाते ।सीता माता-सहित हृदयमें,
पिया तोड़ दो बंधन आज की अब रूह मिलना चाहती हैपिया तोड़ दो बंधन आज,की अब रूह मिलना चाहती है,पिया
चौपाई-प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई।धरि बटु रूप अवधपुर जाई।। भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु।समाचार लै तुम्ह चलि आएहु।। तुरत पवनसुत गवनत
राम जन्म चोपाई मै स्वर्ण भूमि का कण -कण सारा, राम जन्म से मन है हर्षाया ।परम अयोध्या सरयू बहती,
बताओ कहाँ मिलेगें राम ।अवध कि गलियाँ सरयू के तट ,घट घट खोजूँ राम ।बताओ कहाँ मिलेगे राम तीरथ तीरथ
चारों दिशा खुशियाँ छाई भवानी मेरे अंगना में आई……. जब मैया बागो में आई मालिन माँ को माला पहनाई,मालिन की
राम नाम की लो लग जाएगी ईश्वर दर्शन हो जाएंगेलो का लगना क्या हैलो एक धुन लो एक प्यास है।हर