परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ
परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ।यह रिश्ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए पूर्ण समर्पण की
परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ।यह रिश्ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए पूर्ण समर्पण की
सत्संग, या आध्यात्मिक लोगों की संगति, व्यक्ति के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। भक्ति एक सिद्धांत
विनयपत्रिका में भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदासजी भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं। हे हरि
मीरा ठीक कहती है: न मैं जानूं आरती-वंदन, न पूजा की रीत।, जिनके जीवन में प्रेम नहीं है। वे ही
गोपियाँ कृष्ण से पूछती हैं कि बता- तू जिसके ऊपर प्रसन्न होता है उसे क्या प्रदान करता है – जब
सभी शब्दों का अर्थ मिल सकता है परन्तु”जीवन” का अर्थ जीवन जी कर और संबंध का अर्थ संबंध निभाकर ही
उड़ीसा जिले के याजपुर गाँव में बन्धु महान्ति रहते थे, उनके परिवार में पति परायण पत्नी, एक बालक और दो
राम भक्त हनुमान राम भक्त श्री राम के,फैलाते आलोक |भक्ति प्रार्थना कर रहे, राघव को दे धोक || कलयुग के
साधना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण यह है कि जैसे-जैसे साधना प्रगाढ़ होती जाती है, वैसे-वैसे साधक के मन में
हम सब अपने घर में रहकर भी श्रीभगवान का दर्शन कर सकते है,बस हमारा भाव यही होना चाहिए कि कण