कार्तिक माह माहात्म्य – तीसरा अध्याय
श्रीकृष्ण भगवान के चरणों में शीश झुकाओ।श्रद्धा भाव से पूजो हरि, मनवांछित फल पाओ।। सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो!
श्रीकृष्ण भगवान के चरणों में शीश झुकाओ।श्रद्धा भाव से पूजो हरि, मनवांछित फल पाओ।। सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो!
किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक का व्रत रखा करती थी. उसके व्रत खोलने के समय
प्रभु मुझे सहारा है तेरा, जग के पालनहार।कार्तिक मास माहात्म की, कथा करूँ विस्तार।।राजा पृथु बोले – हे नारद जी!
. नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा – अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा
एक इल्ली और घुण था | इल्ली बोली आओ घुण कार्तिक स्नान करे घुण बोला तू ही कार्तिक स्नान कर
महारास-महामिलन है आत्मा और परमात्मा का। इस महामिलन में न तो काम है, न गोपियों में परस्वार्थ ईर्ष्या है, न
कार्तिक मास सोमवार-10 अक्टूबर से मंगलवार- 8 नवंबर तक है । कार्तिक में दीपदान :दीपदान अर्थात दीये जलाना कार्तिक मास
. रासलीला का आरम्भ शरद् ऋतु थी। उसके कारण बेला, चमेली आदि सुगन्धित पुष्प खिलकर महक रहे थे। भगवान ने
कार्तिक का महीना 9अक्टूबर से 8नवंबर तक है ।इसे दामोदर मास भी कहते हैइसी महीने मे यशोदा मैया ने भगवान
. दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी किरणें होती हैं। इनमें विशेष रस होते हैं।