
5आध्यात्मिक विचार
कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे वे अतिमानवीय हैं, दैवीय हैं किंतु फिर भी सर्वसुलभ है अपने
कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे वे अतिमानवीय हैं, दैवीय हैं किंतु फिर भी सर्वसुलभ है अपने
मुक्त पुरुष का किसी चीज से कोई आग्रह नहीं है, कि ऐसा ही होगा तो ही मैं सुखी रहूंगा। जैसा
प्रार्थना प्रेम का परिष्कार है। प्रार्थना की सुगंध है। प्रेम अगर फूल तो प्रार्थना फूल की सुवास। प्रेम थोड़ा स्थूल
एक बच्चा प्रतिदिन अपने दादा जी को सायंकालीन पूजा करते देखता था। बच्चा भी उनकी इस पूजा को देखकर अंदर
हनुमत तेरी बंदगी, करता सब संसार|राम नाम के जाप से,मिटते कष्ट हजार || ईश्वर वंदन भक्ति का, मिले हमें वरदान
आशुतोष सशाँक शेखर चन्द्र मौली चिदंबरा, कोटि कोटि प्रणाम शम्भू कोटि नमन दिगम्बरा, निर्विकार ओमकार अविनाशी तुम्ही देवाधि देव ,जगत
*हे सच्चिदानंद स्वरुप, हे सर्वाधार सर्वेश्वर, सर्वव्यापक,सर्व अंतर्यामी आपके चरणों में हमारा प्रणाम स्वीकार हो।* हे अजर,अमर,अभय, नित्य पवित्र,शुद्ध-बुद्ध,मुक्त स्वभाव!
1.हे मेरे स्वामी.मेरी इच्छा कभी पूर्ण न हो सदैव आपकी ही इच्छा पूर्ण हो.क्योंकि मेरे लिए क्या सही है ये
हरे कृष्णा हरे रामा सागर में पानी और पानी का बुलबुला दोनों एक ही चीज है ठीक उसी प्रकार ईश्वर
हे मेरे प्रभो… सुखी होने के लिये मैंने कौन-सा काम नहीं किया ? विवाह किया, संतानें पैदा कीं, धन कमाया,