ज्ञान के मोती
हरे कृष्ण हरिनाम की महिमान नामसदृशं ज्ञानं न नामसदृशं व्रतम्।न नामसदृशं ध्यानं न नामसदृशं फलम्।।न नामसदृशस्त्यागो न नामसदृशः शमः।न नामसदृशं
हरे कृष्ण हरिनाम की महिमान नामसदृशं ज्ञानं न नामसदृशं व्रतम्।न नामसदृशं ध्यानं न नामसदृशं फलम्।।न नामसदृशस्त्यागो न नामसदृशः शमः।न नामसदृशं
यदि आप अपने देखने केदृष्टिकोण को बदल ले तोसब अच्छा ही अच्छा नजर आएगाजैसा आप स्वयं होते हैं वैसा ही
एक सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग
प्रेयसी तो प्रेयसी होती हेचाहे वह पत्नी के रूप में होरुक्मिणी जैसीया प्रेमिका के रूप में होराधा जैसीया फिर भक्ति
परमात्मा कहते हैं :-मेरे लाडले बच्चों,आपको यह जिन्दगी बोझ तब लगती है जब आप हर काम को ये सोच कर
मैं आत्मा हूं यह मैं जानता हूं इस लिए यह अनहोनी नहीं हो सकती कि कोई मुझे मार दे !क्योंकिआत्मा
अपनत्व एक तत्व में द्वेत असंभव चाहे करे कोटि उपाय…. केवल वह बात परम सत्य है, अखंड सत्य है जिसे
मानव जीवन में बुराई अवश्य हो सकती है, मगर जीवन बुरा कदापि नहीं हो सकता…! मानव जीवन एक अवसर है
हम एक दूसरे के साथ कर्मों की डोरी से बँधे हुए हैं, हम अपने कर्मों के लेन-देन का हिसाब पूरा
प्रेम एक रंग है_ ऐसा रंग जो एक बार ही चढ़ता है… फ़िर लाख कोशिश करो!ना वो रंग छूटता है…ना