श्री चतुर्भुज जगन्नाथजी की आरती ।।
चतुर्भुज जगन्नाथ कंठ शोभित कौसतुभः।पद्मनाभ, बेडगरवहस्य, चन्द्र सूरज्या बिलोचनः।। जगन्नाथ, लोकानाथ, निलाद्रिह सो पारो हरि।दीनबंधु, दयासिंधु, कृपालुं च रक्षकः।। कम्बु
चतुर्भुज जगन्नाथ कंठ शोभित कौसतुभः।पद्मनाभ, बेडगरवहस्य, चन्द्र सूरज्या बिलोचनः।। जगन्नाथ, लोकानाथ, निलाद्रिह सो पारो हरि।दीनबंधु, दयासिंधु, कृपालुं च रक्षकः।। कम्बु
।। मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा
विष्णुरुवाचसंसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदरः स्वयम्।।१।। धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः।सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने।।२।। ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे
कृष्ण के आसपास संयोग नहीं घटित होते थे। वे होने नहीं देते थे।रणनीति के महापंडित कृष्ण खूब समझते थे कि
!!! भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में दिया और वह भी तब, जब युद्ध की घोषणा
सूर्यदेव को जीवनी शक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा से ही
।। नमो राघवाय ।। सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।। अगुन अरूप अलख अज जोई।भगत प्रेम बस
रामचरितमानस एहि नामा।सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा।। मन करि बिषय अनल बन जरई।होई सुखी जौं एहिं सर परई।। भावार्थ-इसका नाम रामचरितमानस
।। ।। दक्ष उवाच।गणेशकीलकं ब्रह्मन् वद सर्वार्थदायकम्।मन्त्रादीनां विशेषेण सिद्धिदं पूर्णभावतः।।१।। मुद्गल उवाच।कीलकेन विहीनाश्च मन्त्रा नैव सुखप्रदाः।आदौ कीलकमेवं वै पठित्वा जपमाचरेत्।।२।।
गजाननाय गांगेयसहजाय सदात्मने।गौरीप्रिय तनूजाय गणेशायास्तु मंगलम्।। नागयज्ञोपवीदाय नतविघ्नविनाशिने।नंद्यादि गणनाथाय नायकायास्तु मंगलम्।। इभवक्त्राय चेंद्रादि वंदिताय चिदात्मने।ईशानप्रेमपात्राय नायकायास्तु मंगलम्।। सुमुखाय सुशुंडाग्रात्-क्षिप्तामृतघटाय च।सुरबृंद