
न्यूटनकी निरभिमानता
लन्दनके वेस्ट मिनिस्टरके विशाल मन्दिरमें आइजक न्यूटनकी समाधि है। वहाँ बहुत-से स्त्री-पुरुष और बच्चे उसकी समाधिके पास जाकर कुछ क्षण

लन्दनके वेस्ट मिनिस्टरके विशाल मन्दिरमें आइजक न्यूटनकी समाधि है। वहाँ बहुत-से स्त्री-पुरुष और बच्चे उसकी समाधिके पास जाकर कुछ क्षण

एक गँवार गड़रिया पर्वतकी चोटींपर बैठा प्रार्थना कर रहा था – ओ खुदा! यदि तू इधर पधारे, यदि तू मेरे

शीलवतीकी कथा नदीके किनारे बसे किसी नगरमें एक वणिक् कुटुम्ब निवास करता था। उस परिवारमें चार जन थे— ससुर-सास और

सवारने एँड़ लगायी और घोड़ा रुक गया भैंसावा ग्रामकी सीमापर। “समुझि लेओ रे मना भाई। अंत न होइ कोई आपना

महाराज दिलीप और देवराज इन्द्रमें मित्रता थी। बुलानेपर दिलीप एक बार स्वर्ग गये| लौटते समय मार्गमें कामधेनु मिली; किंतु दिलीपने

प्राचीन कालमें विदुला नामको एक अत्यन्त बुद्धिमती एवं तेजस्विनी क्षत्राणी थीं। उनका पुत्र संजय युद्धमें शत्रुसे पराजित हो गया था।

प्रेममें इतनी उन्मत्त हो गयी हूँ कि अपने तन मनकी सुधि मुझे नहीं रह गयी है, मैं उसे ढूँढ़नेके लिये

लालचका फल बहुत दूर एक गाँवमें राम और श्यामू नामके दो किसान रहते थे। उनमें रामू सीधा-सादा और नेक था,

सबसे बड़ा मूर्ख एक कंजूस व्यापारी था। उसका शम्भु नामक एक नौकर था, जो बड़ी उदार प्रकृतिका था। सम्भु अपने

भावनगर राज्यके खेडियार माताके मन्दिरमें चण्डी पाठका अनुष्ठान चल रहा था। इसी बीचमें एक दिन चैत्र कृष्ण पञ्चमीको महाराज श्रीभावसिंहजी