
कृष्णावतार को श्रीहरि विष्णु का पूर्णावतार कहा जाता है
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीहरि ने सदा अपने भक्तों की रक्षा हेतु अनेक अवतार लिए और

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीहरि ने सदा अपने भक्तों की रक्षा हेतु अनेक अवतार लिए और

जीवन का आनंद लेने के लिए हमारे अंदर आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरी है।बिना आत्मविश्वास के हम किसी भी मंजिल

आप में केवल भगवत्प्राप्ति की तङफ हो जाय। वह तङफ ऐसी हो, जिसकी कभी विस्मृति न हो। तात्पर्य है कि

पूर्वकाल की बात है, गौतमी के उत्तर- तट पर आत्रेय नाम के ऋषि निवास करते थे।.उन्होंने अनेक ऋत्विज मुनियों के
निकुञ्ज में बैठी सखियाँ परस्पर श्रीकृष्ण की चर्चा करती हुई हार गूंथ रही थीं। इतने में ही उधर से एक

महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में हनुमानजी की उपस्थित और उनके पराक्रम का वर्णन मिलता है।उन्हीं में से पांच प्रमुख

किसी गांव में मक्खन बेचने वाला एक व्यापारी मक्खन लाल रहता था। वह स्वभाव से बहुत कंजूस था लेकिन जो

।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। जैसे ही मंजिल सामने आती है, बड़े आनंद से, बड़े पुलक से तन-प्राण भर

अनेकों तरह से अनेक सम्पत्तियों की खोज में बाहर भटका। बाहरी खोज से उसे तृप्ति नहीं मिली । फिर स्वयं

श्रावण मास में भगवान शिव को नमन करते हुए उनकी छटा के दर्शन करें। शिवजी का वाहन नंदी है, वृषभ