सहज अधिकार
भगवान् बुद्धके जीवनकी घटना है। तथागत छप्पन सालके थे। अभीतक अपनी परिचर्याके लिये किसी उपस्थाक (परिचारक) – की नियुक्तिकी आज्ञा
भगवान् बुद्धके जीवनकी घटना है। तथागत छप्पन सालके थे। अभीतक अपनी परिचर्याके लिये किसी उपस्थाक (परिचारक) – की नियुक्तिकी आज्ञा
वृन्दावनके पास एक ब्राह्मण रहता था। एक समय ऐसा आया कि उसके सभी घरवालों की मृत्यु हो गया। केवल वही
भगवान् बुद्धके पहले जन्मकी बात है। उस समय वे बोधिसत्त्व अवस्थामें थे। उन्होंने एक समृद्ध घरमें जन्म लिया था। अपनी
मिरजका अधिकारी दिलेलखान रातमें गश्त लगाता जयराम स्वामीके कीर्तनमें पहुँचा। स्वामीने कहा- ‘साधुके रास्तेसे जानेपर तत्काल रामका दर्शन मिलता है।’
भक्त नीलन्-तिरुमंगैयाळवार भगवान् के दास्यभावके उपासक थे। ये वाणविद्यामें अत्यन्त कुशल और योद्धा थे चोदेशके राजाने इनकी वीरतासे प्रभावित होकर
शिक्षक होनेका अर्थ एक छोटेसे शहरके एक प्राथमिक स्कूलमें कक्षा पाँचकी एक शिक्षिका थीं। उनकी एक आदत थी कि वह
‘मृत्यु क्या कर सकती है ? मैंने मृत्युञ्जय शिवकी शरण ली है।’ श्वेतमुनिने पर्वतकी निर्जन कन्दरामें आत्मविश्वासका प्रकाश फैलाया। चारों
बहुत पहले काशीमें एक प्रजावत्सल, धर्मात्मा राजा रहता था। एक दिन एक देवदूतने राजासे आकर निवेदन किया-‘महाराज! आपके लिये स्वर्गमें
‘पुजारीको सिखाया सबक गाँवका एकमात्र हनुमान्मन्दिर बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। उसी गाँवके नहीं बल्कि आस-पासके अनेक गाँवोंके लोग वहाँ
महात्मा जडभरत तो अपनेको सर्वथा जड़की ही भाँति रखते थे। कोई भी कुछ काम बतलाता तो कर देते। वह बदले