
भगवान के दर्शन की चाह
भगवान की सच्ची भक्ति करोड़ो में से कोई एक करता है। किसी के दिल में यह प्रश्न उठता है कि
भगवान की सच्ची भक्ति करोड़ो में से कोई एक करता है। किसी के दिल में यह प्रश्न उठता है कि
मन को राम राम सुनाओ हम सोचते हैं कि मै राम को भजता हूँ राम मेरे सब काम कर देंगे
शिष्य का कर्तव्य है गुरु के पवित्र मुख से जो आज्ञाएँ निकले उनका पालन करना यही सनातन धर्म की मर्यादा
ये जगत, प्रेम को वासना ही समझ बैठा है।पर प्रेम उपासना है । प्रेम साधना है।प्रेम चेतना की उच्चतम अवस्था
मोह बाह्य आडम्बर है, किंतु प्रेमको आन्तरिक अनुभूति कहा जाता है । मोहका सांसारिक पदार्थोंसे घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, जबकि
भारत का शासन हिन्दूओ के हाथ में आया है। जंहा हर धर्म को सम्मान दिया जाता है। जिसके शासन काल
एक सन्यासी ने देखा एक छोटा बच्चा घुटने टेक कर चलता था, धूप निकली थी, बच्चे की छाया आगे पड़
न जन्म तुम्हारे हाथ में न मृत्यु तुम्हारे हाथ मेंन भूख न प्यास,न नींद तुम्हारे हाथ में ,इसे तुम रोक
एक भक्त पृथ्वी माता से प्रार्थना करते मेरी अनजाने में पृथ्वी माता से रहती। हे पृथ्वी माता देख तुने मुझे
इसका कारण यह है कि सबका पालन-पोषण करना, सबकी रक्षा करना और सबको सुख देना इनसे ममता दूर होती है