स्थितप्रज्ञता
सन् 1916 की 23 जुलाईको लोकमान्य तिलककी 60 वीं वर्षगाँठ थी। दो वर्ष पूर्व ही वे माँडलेमें छ: वर्षकी सजा
सन् 1916 की 23 जुलाईको लोकमान्य तिलककी 60 वीं वर्षगाँठ थी। दो वर्ष पूर्व ही वे माँडलेमें छ: वर्षकी सजा
मारवाड़-जोधपुरके अधिपति जसवंतसिंहके। स्वर्गवासके बाद दिल्लीनरेश औरंगजेबने महारानीके पुत्र अजीतसिंहका उत्तराधिकार अस्वीकार कर दिया। उसने जसवंतसिंहके दीवान आशकरणके वीर पुत्र
संत बोनीफेसके जीवनकी एक सरस कथा है। उनका पालन-पोषण देवनके पहाड़ी वातावरणमें हुआ था। बचपनसे ही वे एकान्तमें निवास कर
‘मुझे शरण दीजिये, मैं दुर्भाग्यकी मारी एक दीनहीन अबला हूँ।’ एक स्त्रीने फिलस्तीनके महान् संत मरटिनियनसकी गुफाके सामने जोर-जोर से
यह प्रसिद्ध है कि कर्ण अपने समयके दानियोंमें सर्वश्रेष्ठ थे। इधर अर्जुनको भी अपनी दानशीलताका बड़ा गर्व था। एक बार
पर्वतराजकुमारी उमा तपस्या कर रही थीं। उनके जो नित्य आराध्य हैं, वे ठहरे नित्य-निष्काम। उन योगीश्वर चन्द्रमौलिमें कामना होगी और
संतका मौन बहुत बड़ा और दिव्य भूषण है। वाणीके मौनसे संतोंने आश्चर्यजनक बड़े-बड़े कार्योंका सम्पादन किया है। ग्यारहवीं शताब्दीके दूसरे
हाड़-मांसकी देह और ‘मैं’ महर्षि रमणकी आयु तब सत्रह वर्षकी रही होगी। एक बार वे अपने काकाके घरकी छतपर सो
एक शूद्र अपनी पत्नीके साथ कार्तिकी यात्राके निमित्त पंढरपुर गया उसके साथ उसकी नन्ही सी पुत्री जनी भी थी उत्सव
नाग महाशयका सेवा-भाव तो अद्भुत ही था। एक दिन इन्होंने एक गरीब मनुष्यको अपनी झोपड़ी में भूमिपर पड़े देखा। आप