
* गंगा मा ने रविदास जी को कंगन भेट किया *
हमेशा की तरह सिमरन करते हुए अपने कार्य में तत्लीन रहने वाले भक्त रविदास जी आज भी अपने जूती गांठने

हमेशा की तरह सिमरन करते हुए अपने कार्य में तत्लीन रहने वाले भक्त रविदास जी आज भी अपने जूती गांठने

एक बार बरसाने और आस पास के गांव में अकाल पड़ गया और लोगों को खाने पीने कि चीजों की

।। श्रीहरिः।। आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व दिल्ली में परमेष्ठी नाम का काले रंग का एक कुबड़ा दर्जी

.एक नदी के किनारे दो पेड़ थे। उस रास्ते एक छोटी सी चिड़िया गुजरी और पहले पेड़ से पूछा-बारिश होने

एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है किनारे

सुख को प्राप्त करने के लिए हम दौडते रहते हैं। हमे जंहा से भी सुख की प्राप्ति होती है हम

एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे ! एकदिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला कि मुझे अपना खेत कुछ साल

दक्षिण भारत से किसी समय एक कृष्ण भक्त वैष्णव साधु वृंदावन की यात्रा के लिए आए थे । एक बार

1 जनवरी की सर्द रात रमेश अपनी पत्नी रीता संग एक दोस्त के यहां हुई नये साल की पार्टी से

एक सासु माँ और बहू थी। सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती