अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

जय प्रयागराज

महाकुंभ साधू संतो तपस्वी त्यागीयो का महा स्नान 13 जनवरी को चार  पांच लाख साधु महाकुंभ में स्नान करेगें हम

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अन्तर यात्रा क्या है

हमारे जीवन का लक्ष्य जीवनकाल में अन्तर यात्रा को करना है। अन्तर यात्रा का अर्थ है अपने भीतर की यात्रा

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ब्रह्म का स्वरूप

ब्रह्म का स्वरूप ब्रह्म परम सत्ता है जो ज्ञान-आनन्द स्वरूप है। जब अज्ञान का पर्दा अविनाशी ज्ञान के उदय से

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संसार रूपी वृक्ष का वर्णन

श्रीभगवानुवाचऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्‌।छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्‌।। अर्थ-श्री भगवान ने कहा- हे अर्जुन! इस संसार को अविनाशी वृक्ष

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आनंद से ऊपर उठना

हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के

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तुम शरीर नहीं हो

तुम शरीर नहीं हो,शरीर को जानने वाले हो!तुम कर्मेन्द्रियाँ नहीं हो,कर्मेन्द्रियों को जानने वाले हो!तुम ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं हो,ज्ञानेन्द्रियों को जानने

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परमात्मा का स्वरूप

आत्मा का परम रूप परमात्मा है। स्वयं की चेतना की चरम अवस्था परमात्मा है। सर्वव्यापी अनाहत-नाद परमात्मा का संगीत है।

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