
हमारा मन तङफ रहा है दिल भाव चाहता है भाव बनते नहीं है। हम खोज रहे हैं हमे खोज का
परमेश्वर से मिलन मनुष्य-जन्म में ही संभव है परमात्मा ने सिर्फ इन्सान को ही यह हक़ दिया है यह मनुष्य-शरीर
आज मैं अपने आपको ठोक ठोक कर देखना चाहती हूँ मुझमे क्या छिपा हुआ है मुझमे कुछ गुण भी है
साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए
एक दिन साधक के हृदय में प्रशन उठता है आत्म बोध आत्मज्ञान क्या है , आत्म स्वरूप कैसे होता है।
वेदों का सद् उपदेश हैवेदों का सद् उपदेश है, सुनलो ध्यान लगाय। भव बन्धन दुर होता है,आत्म के ज्ञान से,प्रभु
मोहे प्रेम का अमृत पिला दो प्रभु जीवन नैया डगमग डोले, व्याकुल मनवा पी पी बोले । इस नैया को
परमात्मा को हम ग्रथों में ढुढते है मन्दिर और मुर्ति में ढुढते है। व्रत और त्योहार में ढुढते है।कथा पाठ
मन्दिर आत्मा के सम्बंध का केन्द्र है। मुर्ति आत्मा का प्रतिबिंब है। मुर्ति में भगवान हमें उसी रूप में दिखाई
जरा सिर को झुकाओ वासुदेव जी,तेरे सिर पे त्रिलौकी नाथ हैं, छुंऊ इनके चरण बङे प्रेम से, आज यमुना की