
नटराज स्तुती
सत सृष्टि तांडव रचयितानटराज राज नमो नमः ।हे आद्य गुरु शंकर पितानटराज राज नमो नमः ॥ गंभीर नाद मृदंगनाधबके उरे

सत सृष्टि तांडव रचयितानटराज राज नमो नमः ।हे आद्य गुरु शंकर पितानटराज राज नमो नमः ॥ गंभीर नाद मृदंगनाधबके उरे

*मैं निराकार, मैं ही आकार हूँ,**मैं महाकाल, मैं ही किरात हूँ ।।**समय का प्रारब्ध, मैं समय का ही अंत हूं,**मैं

स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु के बाद भिक्षा

भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत पुण्य कमाने के द्वार खोल देता है, इसमें महादेव के सभी भक्तों की असीम

जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी

श्री रामचरितमानस के उत्तर काण्ड में वर्णित इस रूद्राष्टक की कथा कुछ इस प्रकार है। कागभुशुण्डि परम शिव भक्त थे।

अधिकारी न होने पर इस विद्या का भेद खोलने से पाप लगता है।भगवान शिव कहते है। हे शिवे नैतज्ज्ञानं वरारोहे

श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचराः |चिता-भस्मालेपः स्रगपि नृकरोटी-परिकरः || अमंगल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं |तथापि स्मर्तॄणां वरद परमं मंगलमसि || भावार्थ:

काशी ही मधुवन हो जाए,विश्वनाथ धड़कन हो जाए!नयनों में महाकाल बसे तो,सन्यासी ये मन हो जाए!सोमनाथ का करें स्मरण,मल्लिकार्जुन तन

हरि ॐ तत्सत कठोर तप पार्वती शिव प्राप्त, श्रृद्धा पार्वती विस्वास शिव, ज्ञान गंगा को शिव जी अपने मस्तक,यानी अपनी