
नंदी के कान में क्यों बोली जाती है मनोकामना ?
जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी
जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी
श्री रामचरितमानस के उत्तर काण्ड में वर्णित इस रूद्राष्टक की कथा कुछ इस प्रकार है। कागभुशुण्डि परम शिव भक्त थे।
अधिकारी न होने पर इस विद्या का भेद खोलने से पाप लगता है।भगवान शिव कहते है। हे शिवे नैतज्ज्ञानं वरारोहे
श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचराः |चिता-भस्मालेपः स्रगपि नृकरोटी-परिकरः || अमंगल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं |तथापि स्मर्तॄणां वरद परमं मंगलमसि || भावार्थ:
काशी ही मधुवन हो जाए,विश्वनाथ धड़कन हो जाए!नयनों में महाकाल बसे तो,सन्यासी ये मन हो जाए!सोमनाथ का करें स्मरण,मल्लिकार्जुन तन
हरि ॐ तत्सत कठोर तप पार्वती शिव प्राप्त, श्रृद्धा पार्वती विस्वास शिव, ज्ञान गंगा को शिव जी अपने मस्तक,यानी अपनी
भगवान शिव के एक बहुत बड़े भक्त थे, जिनका नाम था नरहरि सुनार। वह पंढरपुर में रहते थे। शिव भक्ति
मृत्यु सत्य है, इस सत्य को न मानना ही ‘असत्य’ है। अर्थी उठते समय बोला जाता है कि- ‘राम नाम
महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम
कैलाश पर्वत पर महावतार बाबाजी के साथ एक मुलाकात की कहानी …“मैं पद्मासन में बैठा, मेरा ध्यान आज्ञा चक्र पर