
मुरलीधर, गोपाल, कन्हैया,मत छेड़ो नंदलाल, कन्हैया।
मुरलीधर, गोपाल, कन्हैया,मत छेड़ो नंदलाल, कन्हैया। मैं गोरी सी एक गुजरिया,कब से बैठी, आय अटरिया,इत उत खोजें, बेसुध नैना,जित देखूँ
मुरलीधर, गोपाल, कन्हैया,मत छेड़ो नंदलाल, कन्हैया। मैं गोरी सी एक गुजरिया,कब से बैठी, आय अटरिया,इत उत खोजें, बेसुध नैना,जित देखूँ
राधे तेरा बरसाना इस जग से न्यारा हैहम और किधर जाएँ यही घर अब हमारा है तेरे बरसाने की श्यामा
मेरो मन वृन्दावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में अटको।मेरो मन वृंदावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में
नजर में रहते हो मगर तुम नजर नहीं आते,ये दिल बुलाये श्याम तुम्हे पर तुम नहीं आते,नजर में रहते हो
जीवन में सफलता की कुंजी है ‘सिद्ध कुंजिका’- दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र
ऐसी लगन तू लगा दे मुझे ऐसी लगन तू लगा दे, मैं तेरे बिना पल ना रहूं,मन में प्रेम वाला
दुर्गा सप्तशती में अर्गला स्तोत्र के बाद कीलक स्तोत्र के पाठ करने का विधान है। कीलक का अर्थ है कुंजी,
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख
मेरो मन वृन्दावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में अटको।मेरो मन वृंदावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में
धरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास । निरख चंद्र मुख चांदनीमुग्ध मगन आकाशधरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास