प्रभु संकीर्तन (Prabhu Sankirtan)

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प्रभु संकीर्तन 10

हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद शब्द से अमूल्य अर्थ है।अर्थ से अमूल्य भावार्थ है।भावार्थ से अमूल्य गूढ़अर्थ,गूढ़ अर्थ से

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प्रभु संकीर्तन 10

ईश्वर की बनाई यह सृष्टी बेशकीमती ख़ज़ानों से भरी हुई है और देखिए एक भी चौकीदार नहीं है…!व्यवस्था ऐसी की

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प्रभु संकीर्तन 9

*अपने हृदयको सदा टटोलते रहना ही साधक का कर्त्तव्य है।ताकि उसमें घृणा, द्वेष, हिंसा, वैर, मान-अहंकार ,कामना आदि,अपना डेरा न

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प्रभु संकीर्तन 9

जय श्री राम जी हम मन्दिर में जाते हैं कथा कीर्तन करते भगवान का भोग लगाते मन्दिर की फेरी करते

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प्रभु संकीर्तन 8

माया जीव को सदैव भ्रम में रखती है। जो अपना है नहीं उसे अपना समझना ही तो भ्रम कहलाता है।

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