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काह भरोसा देह का,बिनसी जाय छिन मांहि।सांस सांस सुमिरन करोऔर जतन कछु नाहिं॥ काह भरोसा देह का –इस शरीर का
काह भरोसा देह का,बिनसी जाय छिन मांहि।सांस सांस सुमिरन करोऔर जतन कछु नाहिं॥ काह भरोसा देह का –इस शरीर का
श्री राम एक भी श्वास खाली ना जाए, नाम डोर है और नामी पतंग डोर पकड़े रहोगे तो पतंग अपने
कतहुँ नहीं ठाउँ , कहँ जाऊं कोसलनाथ!दीन बीतहीन हों, बिकल बिनु डेरे। दास तुलसिहिं बास देहुँ अब करि कृपा,बसत गज
हमें प्रत्येक क्षण अपने मन और मकान को साफ़ करते रहना चाहिए क्योंकि मकान में बेमतलब सामान और मन में
भगवान् के सिवाय कहीं शान्ति नहीं है । आनन्द के समुद्र में डूब जाय । प्रणव का जप करें, प्रणव
तकदीर से मिलती है ‘सांवरे’ तेरी चौखट…!तकदीर हमारी यूँ ही बनाये रखना…!!जब भी तड़पें हम तेरी याद मे .!मन मन्दिर
जीवन में बुराई अवश्य हो सकती है मगर जीवन बुरा कदापि नहीं हो सकता। जीवन एक अवसर है श्रेष्ठ बनने
भक्त के प्रत्येक कार्य में समय सीमा अपना पन लगन और सत्यता भी निहीत हैं। भगवान् दिल की गहराई और
यह संसार ब्रह्म और जीव के मध्य की रुकावट रूपी पहाड़ है। सत्संग की कृपा से विवेक के नेत्र खुलते
“अहंकार” और “गलतफहमी”…ये दो बातें “मनुष्य” को “अपनो” से अलग करती हैं…..“गलतफहमी” उसे सच “सुनने” नहीं देती और…”अहंकार” उसे सच