श्रीधनलक्ष्मी स्तोत्रम्
धनदा उवाच।देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाच।ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव उवाच।पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह
धनदा उवाच।देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाच।ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव उवाच।पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह
ईश्वर उवाचशतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।१।। ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा
।। ।। ॐ कृपासमुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रंजटाधरं पार्वतीवामभागम्।सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपंचिदम्बरेशं हृदि भावयामि।।१।। वाचामतीतं फणिभूषणाङ्गंगणेशतातं धनदस्य मित्रम्।कन्दर्पनाशं कमलोत्पलाक्षंचिदम्बरेशं हृदि भावयामि।।२।। रमेशवन्द्यं रजताद्रिनाथंश्रीवामदेवं भवदुःखनाशम्।रक्षाकरं
माणिक्यं ततो रावणनीतायाः सीतायाः शत्रुकर्शनः। इयेष पदमन्वेष्टुं चारणाचरिते पथि।। (यह सुन्दरकाण्ड का पहला श्लोक है, रत्न- माणिक, ग्रह- सूर्य) तब
नमस्ते भगवान देव, लोकनाथ जगतपते।क्षीरोदवासिनं देवं शेषभोगानुशायिनम्।। हे भगवान देव, हे जगत के स्वामी, हे क्षीर समुद्र में वास करने
(अधिकमास में इस स्तोत्र का नित्य पाठ करके अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करें। भगवान श्रीहरि विष्णु आप सभी का मङ्गल करेंगे।)
प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम्।तृतीयं शङ्करं प्रोक्तं चतुर्थं वृषभध्वजम्।।१।। पञ्चमं कृत्तिवासं च षष्ठं कामाङ्गनाशनम्।सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं चाष्टमं तथा।।२।। नवमं
(हिंदी काव्य में भाव के साथ करें बहुत ही आनंद दायक और प्रभावी है।) जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणाकर
नारद उवाचप्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुः कामार्थ सिद्धये।।१।। पार्वतीनन्दन देवदेव श्रीगणेश जी को सिर झुकाकर प्रणाम करके अपनी
भगवान वेदव्यासजी द्वारा रचित अठारह पुराणों में से एक ‘अग्नि पुराण’ में अग्निदेव द्वारा महर्षि वशिष्ठ को दिये गये विभिन्न