
माँ अन्नपूर्णा की कथा..
एक दिन, भगवान शंकर और माता पार्वती के बीच प्रकृति के महत्व और पुरुष की श्रेष्ठता को लेकर बहस हो

एक दिन, भगवान शंकर और माता पार्वती के बीच प्रकृति के महत्व और पुरुष की श्रेष्ठता को लेकर बहस हो

धूप-छाँव का खेल मनुष्य के जीवन में अनवरत चलता रहता है। कभी वह छाया का आनन्द लेता है, तो कभी

मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल भोगता है। वस्तुत: मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता

देवताओ ओर दैत्यो ने मिल कर जो सागर मंथन किया था और उस मे से जो सामग्री निकली थी उस

.कुलपति स्कंधदेव के गुरुकुल में प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुका था।.कक्षाएँ नियमित रूप से चलने लगी थीं।.उनके योग और अध्यात्म संबंधितप्रवचन

एक संत एक छोटे से आश्रम का संचालन करते थे। एक दिन पास के रास्ते से एक राहगीर को पकड़कर

भगवान राम जानते थे कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है

कोई भक्त,रसिक जब लम्बी गहरी सांस लेकर..आँखों में प्रेमाश्रु भर कर..आह कृष्ण…हे गोविन्द !..मेरे माधव कह कर पुकारता है तो
श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम इतना अधिक बढ़ गया था कि वह उनका वियोग एक क्षण भी नहीं

( एक शिक्षक के पेट में ट्यूमर (गाँठ) हो गया । उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया गया । अगले