
Bhagvan ke dhyan me
हम विधि विधान से व्रत और नियम करते हैं हम दिपक जलाऐगे आरती करते हैं माला जप करते ग्रंथों का

हम विधि विधान से व्रत और नियम करते हैं हम दिपक जलाऐगे आरती करते हैं माला जप करते ग्रंथों का

तुम सत्य हो तुम चैतन्य हो तुम ही आनंद हो। तुम ही राम तुम ही कृष्ण तुम ही बुद्ध तुम

परम पिता परमात्मा को प्रणाम है ।हे परम प्रभु भगवान नाथ मै पुरा जीवन ऐसे ही घुमती रही। मैंने तुम्हारा

हे परम पिता परमात्मा हे भगवान नाथ हे राम जी मै भगवान की आरती करने लगती हूं। तुम मुस्कुरा कर

मन पर विचार न करके हमे परमात्मा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भगवान के जीवन चरित्र को पढते हुए भगवान

हमे पहले परम पिता परमात्मा का बनना होगा। परमात्मा से प्रेम करना होगा। एक ही भगवान पर विस्वास करना होगा।

महामुनी व्यास को नदी के उस पार जाना था ,और वे नाव के प्रशिक्षा कर रहे थे,कि इतने में वहां

मनुष्य के शरीर में नौ दुर्ग यानी नौ दरवाजे है।जिनके मुंह बाहर की और खुलता हैं।इन्हीं दरवाजों से जीव बाहर

{ॐ} आगे-कभी कभी नाद दिन रात मे अचानक खुल जाता है कभी आपके नियमित समस पर जैसे नित्य रात्रि के

अविनाशी परमेश्वर तो कोई और ही है और वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है और वही