कान्हा का चित्र
एक बार कन्हैया को जिद्द चढ़ गई कि मैं अपना चित्र बनवाऊँगाये बात कान्हा ने मईया ते कही, मईया मै
एक बार कन्हैया को जिद्द चढ़ गई कि मैं अपना चित्र बनवाऊँगाये बात कान्हा ने मईया ते कही, मईया मै
जिसपर तुम हो रीझते, क्या देते जदुबीररोना-धोना सिसकना, आहोंकी जागीर विरह एक अति विलक्षण योग है। एक विष की घूँट
हे मोहन मुरली वाले बस तेरा प्यार माँगा है इतना दे मुझे सहारा दिखला दे अपना द्वारामैं तेरा पूत पदों
सांवरा कहता है कि जो मुझे प्रेम से भजता है। उसके मन मन्दिर में मै निवास करता हूँ ।और हर
ठाकुर जी की नाव भवसागर के पार जा रही थी।ठाकुर जी ने कहा :- जिसे बैठना हो बैठ जाए।अब हम
एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे, रास्ते
वृंदावन के पास एक गाँव में भोली-भाली माई ‘पंजीरी’ रहती थी। दूध बेच कर वह अपनी जीवन नैया चलाती थी।
वृन्दाबन साँचौ धन भैया।कनक कूट कौटिक लगि तजिए, भजिये कुँवर कन्हैयाँ॥जहाँ श्री राधा चरनरेनु की कमला लेत बलैय्या।तिन को गोपी
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए | कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये | ज्योति दीप मन होय
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे | नाचे दुनिया सारी, आनंद रस बरसे रे || नटखट नटखट हैं नंदनागर,