
मीरा चरित भाग- 80
मीरा ने अपने पाँव छुड़ाकर उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा। बालकों को दुलार करके और उन सबको भोजन
मीरा ने अपने पाँव छुड़ाकर उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा। बालकों को दुलार करके और उन सबको भोजन
राजपूत के बेटे की जागीर उसकी तलवार है।उसके बल से वह जहाँ खड़ा होगा जागीर बना लेगा।’वे कमर से तलवार
गंगा दौड़कर कलम कागज ले आई।‘अभी की अभी’- मीरा ने हँसकर कहा।‘हाँ हुकुम, शुभ काम में देरी क्यों?’‘ला दे, पागल
यह थोड़ी सी दक्षिणा है। इसे स्वीकार करने की कृपा करें।’- मीरा ने उन्हें भोजन कराकर तथा दक्षिणा देकर विदा
महाराणा ने पहले तो समझा कि नखरे कर रहा है, किंतु जब गर्दन ढल गई तो उनके मुख से निकला-
उदयकुँवर बाईसा का आश्चर्य उनके हृदय को मथे जा रहा था। भजन पूरा होने पर मीरा ने धोक दी।हृदय का
उस दिन मीरा मन्दिर में नहीं पधारी।रसोई बंद रही। दासियों के साथ समवेत स्वर में कीर्तन के बोलों से महल
‘आपकी चालाकी नहीं चलेगी सरकार, झूला रुकने से पूर्व ही कूद पड़तें हैं आप, इसलिए चढ़ते झूले पर ही नाम
मीरा ने स्त्रियों की ओर दृष्टि फेरी- ‘तुम दुर्गा और चामुण्डा का स्वरूप हो।बिना मन के कोई हाथ तुम्हें कैसे
उस छोटी सी आयु में ही वे न्यायासन पर बैठते तो बाल की खाल उतार देते।बैरी को मोहित कर लें