
सुकरात और आईना
दार्शनिक सुकरात दिखने में कुरुप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे
दार्शनिक सुकरात दिखने में कुरुप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे
मेरी और ठौर गति नाहीं तुम्हरोई दास कहाऊँ ॥सदा-सदा में शरण तुम्हरी तुम्हरो जस नित गाऊँ।तुम्हरे मृदुल चरण कमलन में
*ज्ञान हमेशा झुककर ही हासिल कियाजा सकता है खुद को ज्ञानी समझने से नहीं।। एक शिष्य गुरू के पास आया।
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत । पूर्जा पूर्जा कट मरे, कबहू न छोड़े खेत ।। हमारा देश
जब जब कृष्ण न बंसी बजाईतब तब राधा मन हर्षाईसखियों संग जमुना तट पहुचीपर कही दिखे न कृष्ण कन्हाई“नटखट नंदगोपाल
शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगीं ।
सत सृष्टि तांडव रचयितानटराज राज नमो नमः ।हे आद्य गुरु शंकर पितानटराज राज नमो नमः ॥ गंभीर नाद मृदंगनाधबके उरे
पौराणिक काल में एक वृंदा नाम की लड़की थी। उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही
श्री सियावर रामचन्द्रजी की जय दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्रजी अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात
परिवार के सभी आदरणीय भगत जनों एवम् मातृ शक्ति को जय राम जी की भगवान की कौन सी लीला में