भक्त और भगवान् की परस्पर लीला
( पोस्ट 2 )
गत पोस्ट से आगे ………….तदन्तर संसार में जितने भक्त कहलाते थे, उनके पास नारदजी गये और बोले – भक्तजी !
गत पोस्ट से आगे ………….तदन्तर संसार में जितने भक्त कहलाते थे, उनके पास नारदजी गये और बोले – भक्तजी !
गत पोस्ट से आगे ………….एक समय की बात है – भगवान् श्रीकृष्ण का अपने रनिवास में रुक्मिणी आदि के सम्मुख
गत पोस्ट से आगे ………….सखियों ने कहा – अभी नहीं, अभी तो हमारी रहस्य की बात हो रही है |
गत पोस्ट से आगे ………….हनुमानजी का श्रीरामचन्द्रजी में दास्यभाव था, परंतु अर्जुन का श्रीकृष्ण में दास्यभाव भी था तथा सख्यबाव
गत पोस्ट से आगे ………….कृष्ण बोले – सम्मुख जो संकोच होता है यही प्रेम की कमी है | संकोच होना
गत पोस्ट से आगे ………….प्रेमी, प्रेम और प्रेमास्पद तीन हैं, किंतु वस्तु से तो एक ही हैं | जैसे ज्ञान
गत पोस्ट से आगे ………….भगवान् के शीघ्र मिलने के उद्देश्य से मिलने की इच्छा नहीं रखनी चाहिये | इससे भी
एक जगह चर्चा चल रही थी कि गुरू कैसा होना चाहिए. हम सभी यही कहते हैं कि गुरू तो अच्छा
क्या तुम नहीं देखते कि आधी आयु तो नींद से ही नष्ट हो जाती है??? और कुछ आयु भोजन आदि
राधा जी की कृपा चन्दन वृंदावन की ब्रज भूमि में रहने वाला अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। दिन भर