प्रभु संकीर्तन 53
प्रातः वंदन,,,,🙏🙏नमःशिवायहमारा शुद्धिकरणशरीर जल से,मन सत्य से बुद्धि ज्ञान सेऔर आत्मा संस्कार से पवित्र होती हैंअगर आप भीतर से बिलकुल
प्रातः वंदन,,,,🙏🙏नमःशिवायहमारा शुद्धिकरणशरीर जल से,मन सत्य से बुद्धि ज्ञान सेऔर आत्मा संस्कार से पवित्र होती हैंअगर आप भीतर से बिलकुल
|| श्री हरि: ||सत्संग के बिखरे मोती —श्रीकृष्ण के स्वरूप को, श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य को, श्रीकृष्ण के माधुर्य को ग्रहण
जो मनुष्य अपना काम-काज करते हुए प्रभु के नाम का सुमिरन करता रहता है , वह सदा समाधि के आनंद
गोपीयां तो चाहती यहीं है कि इस दिल को कन्हैया चुरा ले वे उपरी तौर से मेरे प्रभु प्राण नाथ
यमुना तट के पास मेंबैठी हूँ तेरी आस मेंतुम बसे हृदय में मेरेहो हर एक आभास में। मुरली की धुन
सुन सखी निठुर पप्पैया बोले।पिहु-पिहु कर पिय सूरत जनावे, मेरो प्राण पात जिहुं डोले॥सूरत समुद्र में मेरो मन कर्कश, मदन
।। नमो राघवाय ।। जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें।सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें।। नाथ जीव तव मायाँ मोहा।सो निस्तरइ तुम्हारेहिं
यह जीवन की सच्चाई है। एक दिन भी हम थोड़े कमजोर हो जाते हैं। तब घर वाले सबसे पहले दुत्कारते
हम भगवान् के मन्दिर में जाकर दर्शन करते हैं इसलिए हमें लगता है कि भगवान मन्दिर में ही रहते हैं।
(1) होली –अर्थात हम भगवान के “होलिए”। तन, मन, धन, समय, श्वास, संकल्प, सब भगवान के लिए है।(2) होली :-अर्थात