प्रभु संकीर्तन 45
!! श्रीहरि: !!श्रीराम की कृपा —तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान ।रिनिया राजा राम भे धनिक भए हनुमान
!! श्रीहरि: !!श्रीराम की कृपा —तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान ।रिनिया राजा राम भे धनिक भए हनुमान
संसार सागर में अंधेरे और उजाले दोनों हैं… जरूरी नहीं कि हम अपने इन बाहर खुले हुए नेत्रों से दिखाई
तुलसीदास जी कृत “श्री रामचरितमानस से साभार ‘ जय हनुमन्त सन्त हितकारी।सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥जन के काज विलम्ब
|| श्री हरि: || भगवान् की विशेष कृपा से मनुष्य शरीर मिलता है | मनुष्य-शरीर, मुमुक्षा और सत्संग – ये
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥21॥भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों
।राम। ।राम। ।राम। ।राम।यह संसार उत्पन्न नहीं हुआ था, तब एक भगवान् ही थे और यह संसार नहीं रहेगा तब
जय श्री राम हमें भगवान की भक्ति करते हुए सरवरूप परमात्मा की झलक और सबमे परमात्मा के प्रकाश की झलक
हर्ष और प्रेम का सुन्दर पावन पर्व होली है। वृन्दावन में बड़े ही उल्लास के साथ बड़े ही धूमधाम से
अनहद नाद ओंकार अगमं सुगमं परम विलक्षणमपूर्ण सत्यं पूर्ण सक्षमंअनहद नादं समग्र व्यापंसिमरत नामं परम आह्लादं केवल परमात्मा का नाम
|| श्रीहरि: || व्रजवासियों के दुःख दूर करने वाले वीरशिरोमणि शयमसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुस्कान की एक उज्ज्वल रेखा ही