प्रभु संकीर्तन 36
|| श्रीहरि: || व्रजवासियों के दुःख दूर करने वाले वीरशिरोमणि शयमसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुस्कान की एक उज्ज्वल रेखा ही
|| श्रीहरि: || व्रजवासियों के दुःख दूर करने वाले वीरशिरोमणि शयमसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुस्कान की एक उज्ज्वल रेखा ही
कल हृदय रो उठा जब जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने एक न्यूज चैनल पर एंकर से कहा – ‘मैं
भक्त मन्दिर में जाकर अपने भगवान् से प्रार्थना करने लगीं शिश नवाकर अन्तर्मन से भाव विभोर हो कभी निहारती कभी
ऊं नमः शिवाय श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः!!ॐ श्री काशी विश्वनाथ विजयते🙏* अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।पराक्रमश्चबहुभाषिता च
है मेरे श्याम सलोने साँवरे कोई मरहम नहीं चाहिये,जख्म मिटाने के लिये!!मेरे श्याम आपकी एक झलक ही काफी है,मेरे ठीक
याद रखो – तुम जो भक्ति, प्रेम और ज्ञान की बातें करते हो, इनका भी कोई मूल्य नही है, यदि
एक भक्त कहता है हम भगवान की माला जप करते हैं। मन्दिर में भजन कीर्तन करते हैं। हमे अपने घर
एक सखी नाम रस के प्रेम को बताते हुए कहती हैं कि सखी धीरे-धीरे राधे राधे राम राम का नाम
जो समय की कद्र नहीं करते समय उनकी कद्र नहीं करता, कारण समय की पुनरावृत्ति नहीं होती, संसार की समस्त
भगवान ने हमें दो कान दिए हैं। हमे ग्रथ पढते हुए दोनों कान को सतर्क रखने होते है। एक कान