प्रभु संकीर्तन 16
भक्त भगवान का सिमरण करते हुए मन ही मन सोचता है। मुझे अपने मन को राम नाम का पाठ पढाना
भक्त भगवान का सिमरण करते हुए मन ही मन सोचता है। मुझे अपने मन को राम नाम का पाठ पढाना
भगवान को भजते हुए झुककर नमन करके चलना आ गया वही आत्म समर्पण करता है। जो भक्त भगवान को भजते
हम भगवान की याद में आंसू बहातें है तब हमारे अन्दर जन्म जन्मानतर के पाप कर्म जल जाते हैं भगवान
*एक सखी भाव में हवा से बात करते हुए ए हवा तू मेरे साँवरे के पास जाती तो होगी,मेरे प्यारे
परमात्मा को कभी भी एक रूप में नहीं खोजा जा सकता है। भक्त भगवान को अन्तर्मन से प्रार्थना करता है
जब भीआपके हृदय मेंकोई बात उठती है तोआपके जानने से पहले परमात्मा तकपहुंच जाती हैआप अपने हृदय से बहुत दूर
“गिलास में पानी और दूध पी सकते हैं..उसी गिलास में जूस या शरबत भी पी सकते हैं..फिर उसी में शराब
आपने ईश्वर के दर्शन के लिए अब तक क्या किया है। ईश्वर दर्शन के लिए हमें हर क्षण ईश्वर का
*सत्संग ही शुद्ध, निर्मल,* *पवित्र, ज्ञान-जल की* *वह धारा है जो अन्तःकरण* *को मल से रहित* *कर शुद्ध, निर्मल, पवित्र*
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद शब्द से अमूल्य अर्थ है।अर्थ से अमूल्य भावार्थ है।भावार्थ से अमूल्य गूढ़अर्थ,गूढ़ अर्थ से