अपरिचितकी मदद
अपरिचितकी मदद विद्यासागरने एक दिन अपने एक विश्वस्त कर्मचारीसे कहा-‘देखो, कलूटोलामें अमुक गलीके अमुक नम्बरके घरमें एक मद्रासी भद्रपुरुष रहते
अपरिचितकी मदद विद्यासागरने एक दिन अपने एक विश्वस्त कर्मचारीसे कहा-‘देखो, कलूटोलामें अमुक गलीके अमुक नम्बरके घरमें एक मद्रासी भद्रपुरुष रहते
द्रोणाचार्य उन दिनों हस्तिनापुरमें कुरुकुलके बालक पाण्डव एवं कौरवोंको अस्त्र-शस्त्रकी शिक्षा दे रहे थे। एक दिन एक काले रंगका पुष्ट
महात्मा इब्राहीमका नियम था कि किसी अतिथिको भोजन कराये बिना भोजन नहीं करते थे। एक दिन उनके यहाँ कोई अतिथि
एक छन्दमें चार पातिव्रत्य – प्रसंग बिंदिया चाहे तो निज सत से, रवि को राह भुला सकती है। यम के
एक अंग्रेज अफसर अपनी नवविवाहिता पत्नीके साथ जहाजमें सवार होकर समुद्र यात्रा कर रहा था। रास्तेमें जोरसे तूफान आया। मुसाफिर
नशा ही तो— कामका नशा चढ़ गया था सेठ धनदत्तके पुत्रके सिरपर एक नट आया उनके यहाँ और उसने अपनी
रक्षामन्त्रीका पत्र एक बार अमेरिकी सेनाके एक प्रमुख अधिकारीने रक्षामन्त्रीके आदेशको ठीकसे समझ न पानेके कारण कोई भूल कर दी।
सृष्टिकी सम्पूर्ण पवित्रताकी साकार प्रतिमा निर्दिष्ट करना हो तो कोई भी बिना संकोचके किसी आर्यकुमारीका नाम ले सकता है। मृदुता,
महर्षि आयोदधौम्यके दूसरे शिष्य थे उपमन्यु । गुरुने उन्हें गायें चराने और उनकी रखवाली करनेका काम दे रखा था। ब्रह्मचर्याश्रमका
महात्मा हरिराम व्यासजी घर छोड़कर संवत् 1612 में ओरछासे वृन्दावन चले आये थे। उस समय इनकी अवस्था 45 वर्षकी थी।