
संत-स्वभाव (1)
श्रीविश्वनाथपुरी वाराणसीमें एक साधु गङ्गास्नान कर रहे थे। सहसा उनकी दृष्टि प्रवाहमें बहते एक बिच्छूपर पड़ी। साधुने दया करके उसे

श्रीविश्वनाथपुरी वाराणसीमें एक साधु गङ्गास्नान कर रहे थे। सहसा उनकी दृष्टि प्रवाहमें बहते एक बिच्छूपर पड़ी। साधुने दया करके उसे

काशीके कुछ पण्डित आचार्य शंकरसे द्रोह मानते थे। एक दिन काशीके कुछ पण्डितोंने आचार्य शंकरके ऊपर एक कटहे कुत्तेको काटनेके

एक राजा घोड़ेपर चढ़ा वनमें अकेले जा रहा था! जब वह डाकू भीलोंकी झोंपड़ीके पाससे निकला, तब एक भीलके द्वारपर

वाणीसे व्यक्तित्वका बोध मुरलीधरके स्वभावसे उसके घरके लोग तंग आ चुके थे। यह हर बात इतने कठोर तरीकेसे बोलता कि

एक महात्मा थे। एक बार एक आदमी उनके पीछे पड़ गया कि ‘मुझे भगवान्के दर्शन करा दो।’ उन्होंने कहा -‘मुझे

जीविकाका दान चन्द्रनगरके राजा चन्द्रभान रोज सबेरै एक घण्टेक दान देते थे। रोजाना झुण्ड-के-झुण्ड भिखारी आते और दान ले जाते।

सुकरातकी पत्नी अंटीपी अत्यन्त कर्कशा थी। वह अकारण ही पतिसे झगड़ा किया करती थी। एक बार किसी बातपर असंतुष्ट होकर

एक साधु नगरसे बाहर कुटियामें रहते थे। परंतु भिक्षा माँगने तो उन्हें नगरमें आना ही पड़ता था । मार्गमें एक

महाराज उत्तानपादके विरक्त होकर वनमें तपस्या करनेके लिये चले जानेपर ध्रुव सम्राट् हुए। उनके सौतेले भाई उत्तम वनमें आखेट करने

श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर मार्ग चलते समय भी देखते जाते थे कि किसीको उनकी सेवाकी आवश्यकता तो नहीं है। एक दिन