
निधियों की निधि प्रियाजु
श्री कृष्णप्राणेश्वरी श्री किशोरी जु माधुर्य सार सर्वस्व की अधिष्ठात्री है । अर्थात माधुर्य जो भी है वह उनकी कृपा
श्री कृष्णप्राणेश्वरी श्री किशोरी जु माधुर्य सार सर्वस्व की अधिष्ठात्री है । अर्थात माधुर्य जो भी है वह उनकी कृपा
कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं…. उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियों के लिए
चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम…मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ, न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ। न
संन्यासी का अर्थ है : जो निरंतर जागा हुआ जी रहा है, होशपूर्वक जी रहा है। कदम भी उठाता है,
एक बार एक राज महल में कामवाली का लड़का खेल रहा था. खेलते खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ
हमारे जीवन की सभी समस्याओं की वजह सिर्फ दो शब्द है.? हम सपने बहुत जल्दी देखते हैं,और कार्य बहुत देरी
।। ॐ नमो भगवते गोविन्दाय ।। जिनके हृदय में निरन्तर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धान्त:करण पुरुष स्वप्न में
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद मनुष्य के तीन शरीर होते हैं।पहला आकार आकृति से रहित निरंकारफिर सुक्ष्म शरीरमन
ऐसा निष्काम बनना चाहिये कि यदि राम-नाम के बदले में कोई तुम्हें सुवर्ण से भरी हुई पृथ्वी देता हो तो
आध्यात्मिक विचारकृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियों के लिए असंभव सी