मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग- 48

आज महाराणा साँगा का मुख प्रसन्नता से खिल उठता था।अस्सी घावों भरी देह, एक हाथ, एक पाँव और एक आँख

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मीरा चरित भाग- 47

आखिर विदाई का दिन भी आया। चारों ओर दहेज जमा करके बीच में पलंग पर मीरा और भोजराज को बिठाया

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मीरा चरित भाग- 46

भाणेज बावजी (जयमलजी) ने केवल कटार से आखेट में झुंड से अलग हुए एकल सुअर को पछाड़ दिया। हमारे महाराज

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मीरा चरित भाग- 45

इन चूड़ियों में से, जो कोहनी से ऊपर पहनी जाती हैं उन्हें खाँच कहते हैं) गलेमें तमण्यों (यह भी ससुराल

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मीरा चरित भाग- 44

वहीं उनका सत्कार करके विदा कर देते हैं। सब कहते हैं कि इन बाबाओं ने ही मीरा जैसी सुन्दर, सुशील

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मीरा चरित भाग- 43

आँहों भरी आँसुओं की कराह….. विवाह की तैयारी में मीरा को पीठी (हल्दी) चढ़ी। उसके साथ ही दासियाँ गिरधरलाल को

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मीरा चरित भाग- 42

एक ने अपनी बारी आते ही कहा—’मारो मत अन्नदाता! मैंने कूकड़ो बोलताँ (मुर्गा बोलते) पेलाँ ही इण झरोखा शू एक

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मीरा चरित भाग- 41

सेवकों को पलक झपकाने का भी अवकाश न हो, ऐसे अपने-अपने मुरतबके अनुसार सावधान कार्यरत दिखायी देते हैं। अटाले (रसोई)

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मीरा चरित भाग-40

म्हारो सगपण तो सूँ साँवरिया जग सूँ नहीं विचारी।मीरा कहे गोपिन को व्हालो म्हाँ सूँ भयो ब्रह्मचारी।चरण शरण है दासी

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मीरा चरित भाग- 39

मीरा की ‘दिखरावनी….. मेड़ता से गये पुरोहितजी के साथ चित्तौड़ के राजपुरोहित और उनकी पत्नी मीरा को देखने के लिये

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