भक्त और भगवान् की परस्पर लीला
( पोस्ट 5 )
गत पोस्ट से आगे ………….सखियों ने कहा – अभी नहीं, अभी तो हमारी रहस्य की बात हो रही है |
गत पोस्ट से आगे ………….सखियों ने कहा – अभी नहीं, अभी तो हमारी रहस्य की बात हो रही है |
गत पोस्ट से आगे ………….हनुमानजी का श्रीरामचन्द्रजी में दास्यभाव था, परंतु अर्जुन का श्रीकृष्ण में दास्यभाव भी था तथा सख्यबाव
गत पोस्ट से आगे ………….कृष्ण बोले – सम्मुख जो संकोच होता है यही प्रेम की कमी है | संकोच होना
गत पोस्ट से आगे ………….प्रेमी, प्रेम और प्रेमास्पद तीन हैं, किंतु वस्तु से तो एक ही हैं | जैसे ज्ञान
गत पोस्ट से आगे ………….भगवान् के शीघ्र मिलने के उद्देश्य से मिलने की इच्छा नहीं रखनी चाहिये | इससे भी
. श्रीहितकिशोरीशरण बाबाजी (सूरदास बाबा)(वृन्दावन) ‘भैया ! मेरे मन में ऐसी आवे कि विश्व को कुत्ता हू दुःखी न होय,
1-श्रुति:- श्रुति को पूर्ण रूप से दैवीय माना जाता है। इसको पद्य की कड़ियों के रूप में संरक्षित न रखकर
बिना किसी व्यवधान के अनन्य भाव से मेरा चिंतन करना, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा करना, किसी भी प्राणी
प्रभु की भक्ति चाहे कितने कष्ट, कठिनाइयां, निन्दा तथा हानि सहन करने पर प्राप्त हो तो सस्ता सौदा समझो क्योंकि
भक्ति हम सबको दिखाकर करते हैं तब भक्ति के अन्दर दृढता को पकड़ नहीं सकते हैं। खुली वस्तु पर सबकी