मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग-15

‘संसारमें और भी तो बहुत कुछ स्पृहणीय है बेटी ! फिर इसी ओर तुम्हारी रुचि क्यों हुई? तुम्हारी आयुके बालक

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मीरा चरित भाग-14

यदि कुशल चाहते हो तो लौट जाओ चुपचाप और छः महीनेके बाद श्रीवर्धिनी बावड़ीसे मेरा दूसरा विग्रह मिलेगा। उसे मन्दिरमें

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मीरा चरित भाग- 13

अचानक हड़बड़ाकर वे जग गये और मन-ही-मन कहने लगे-‘यह क्या स्वप्न देखा मैंने? क्या सचमुच ही प्रभु डाकोर पधारना चाहते

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मीरा चरित भाग- 12

चार सेवक और कुछ सैनिक चारों ओर गये हैं।’–नायकने हाथ जोड़े हुए कहा । राजपुरोहितजी और दो उमरावोंके साथ दूदाजी

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मीरा चरित भाग- 11

ठहरिये दादोसा! लगे हाथ एक वरदान चारभुजानाथसे और माँग लूँ। ऐसे पावन पर्व जीवनमें बार-बार नहीं आते।’- पिताके वक्षसे अलग

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मीरा चरित भाग- 10

‘अब मैं जाऊँ कुँवरसा? गिरधर गोपाल अकेले हैं..??”‘जाओ बेटी! तुम्हारी माँ तुम्हें पहुँचा आयँगी।’‘नहीं कुँवरसा! मैं चली जाऊँगी। डर-वर नहीं

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मीरा चरित भाग 9

‘वाह, तुमने तो चारणोंके समान प्रसन्न कर दिया मुझे। सच, जिस समय कड़खों और रणभेरीकी आवाजें कानोंमें पड़ती हैं। कवचकी

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मीरा चरित भाग- 8

यदि वे मुझे जलती हुई अग्निमें कूद पड़नेको कहें तो क्या मैं यह आगा-पीछा सोचूँगा कि मेरे पीछे मेरी पत्नी

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मीरा चरित भाग 7

ठाकुरजीको ही बाहर ले जाकर दिखा देती न? सारे रनिवासमें दौड़म-दौड़ मच गयी।’ ‘बीनणी! काला री गत कालो इ जाणे।

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मीरा चरित भाग -6

वहाँ जाकर झरोखेमें लकड़ीकी चौकी सीधी करके और उस पर अपनी नयी ओढ़नी बिछा करके ठाकुरजी को विराजमान कर दिया।

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