श्री रामचरित मानस लंका काण्ड
दोहा :गयउ सभा दरबार तब,सुमिरि राम पद कंज।सिंह ठवनि इत उत चितव,धीर बीर बल पुंज॥18॥ भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों
दोहा :गयउ सभा दरबार तब,सुमिरि राम पद कंज।सिंह ठवनि इत उत चितव,धीर बीर बल पुंज॥18॥ भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों
चौपाई : जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥ निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख
प्रातःअभिवादन,प्रणाम नमस्कार। मात-पिता चरण कमलेभ्योःनम।श्री गुरुचरण कमलेभ्योःनम ।राम राम। जय सीताराम।जयश्रीकृष्ण। बजरंग बली की जय।जय मां भवानी।हर हर महादेव।प्रातःवंदन ब्रह्म
गोस्वामी तुलसीदास जी ” नाम-नामी प्रकरण ” के अंतर्गत नाम एवं रूप की चर्चा करते हुए कहते हैं –को बड़
श्रीराम गोविन्द मुकुन्द कृष्णश्री नाथ विष्णो भगवन्नमस्ते।प्रौढारिषड् वर्ग महाभयेभ्योमां त्राहि नारायण विश्वमूर्ते।। भगवान विष्णु ने जब रघुवंशी महाराज दशरथ के
अयोध्या से बिदाई के समय अंगद के भगवान श्रीराम से विनय- सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो, दीन दयाकर आरत बंधो।।
भगवान राम विभीषण जी को अपने धर्म रथ के बारे में बताते हुए कहते हैं, कि हे विभीषण! विजय हमेशा
एक गोपी को श्रीकृष्ण का बहुत विरह हो रहा था। सारी रात विरह में करवटे बदलते ही बीती। सुबह ब्रह्म
गीता
प्रार्थना
गीता हृदय भगवान का,सब ज्ञान का शुभ सार है।इस शुद्ध गीता ज्ञानसे ही चल रहा संसार है।। गीता परम विद्या
गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ||
|आज गीता जयन्ती हैं वैदिक पथिकमार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर गीताजयंती मनाई जाती है। इस साल 23