Scriptures

प्रस्तुत प्रसंग में प्रभु राम जी सुग्रीव जी के माध्यम से संसार को मित्रता का का महत्व बताते हुए कहते हैं…

चौपाई : जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥ निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख

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अगुन सगुन दुइ ब्रम्ह सरुपा

प्रातःअभिवादन,प्रणाम नमस्कार। मात-पिता चरण कमलेभ्योःनम।श्री गुरुचरण कमलेभ्योःनम ।राम राम। जय सीताराम।जयश्रीकृष्ण। बजरंग बली की जय।जय मां भवानी।हर हर महादेव।प्रातःवंदन ब्रह्म

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श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ।।

श्रीराम गोविन्द मुकुन्द कृष्णश्री नाथ विष्णो भगवन्नमस्ते।प्रौढारिषड् वर्ग महाभयेभ्योमां त्राहि नारायण विश्वमूर्ते।। भगवान विष्णु ने जब रघुवंशी महाराज दशरथ के

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गीता प्रार्थना

गीता हृदय भगवान का,सब ज्ञान का शुभ सार है।इस शुद्ध गीता ज्ञानसे ही चल रहा संसार है।। गीता परम विद्या

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