
लक्ष्मण जी का माता सुमित्रा से आज्ञा लेने जाना
वनगमन के समय जब लक्ष्मण जी ने साथ चलने का हठ किया तो प्रभु ने कहा, अच्छा, माँ से बिदा

वनगमन के समय जब लक्ष्मण जी ने साथ चलने का हठ किया तो प्रभु ने कहा, अच्छा, माँ से बिदा

श्रीरामचरितमानस- बालकाण्ड ।। छन्द-भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।। लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा
प्रभु रामजी सीता लक्ष्मण और निषादराजके साथ गंगा-पार करके रेतीमें खड़े हैं । सकुचा रहे हैं कि केवटको पार उतारनेकी

जानत प्रीति रीति रघुराई भगवान राम वनवास से आने के बाद माता केकैयी को पश्चाताप की अग्नि में जलते देखते

।। छन्द-नमामि भक्त वत्सलं, कृपालु शील कोमलं।भजामि ते पदांबुजं, अकामिनां स्वधामदं।।१।। निकाम श्याम सुन्दरं, भवांबुनाथ मंदरं।प्रफुल्ल कंज लोचनं, मदादि दोष

जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा।क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।। हरि हर निंदा सुनइ जो काना।होइ पाप गोघात समाना।। कटकटान कपिकुंजर

समाज में धर्म होगा तो सामाजिक व्यवस्था बनी रहेगी। और यदि आधार के रूप में धर्म विद्यमान नहीं होगा तो

(अंक – १)श्री रामचरितमानस में राम कथा का प्रारंभ मुनि भारद्वाज एवं ज्ञानी याज्ञवल्क्य के संवाद से प्रारंभ होता है।

लंका प्रवेश के लिए समुंद्र पर सेतु निर्माण के समय भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में महादेव को प्रसन्न करने के

तुलसीदासजी जब रामचरित- मानस लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी सिय राम मय सब जग जानी,करहु प्रणाम जोरी