नवरात्रे विशेष मानस में शक्ति उपासना
मानस मंथन शबरी की प्रतीक्षा माता शबरी ने प्रभु को प्राप्त किया न उनके पास तप था न ही जोग
मानस मंथन शबरी की प्रतीक्षा माता शबरी ने प्रभु को प्राप्त किया न उनके पास तप था न ही जोग
मामवलोकय पंकज लोचन।कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन।।नील तामरस स्याम काम अरि।हृदय कंज मकरंद मधुप हरि।। जातुधान बरुथ बल भंजन।मुनि सज्जन रंजन
जासु बिरहं सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पांती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ रिपु
।। नमो राघवाय ।। जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं।निरखहिं राम रूप अनुरागीं।। कहहिं परसपर बचन सप्रीती।सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती।।
श्री रामाय नमः देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड।। अगनित रबि ससि सिव चतुरानन।बहु
तुलसी
दासजी के राम' केवल दो लोगों का आतिथ्य स्वीकार करते हैं
रामचरितमानस देखें तो वनवास की अपनी महायात्रा के मध्य ‘ तुलसीदासजी के राम’ केवल दो लोगों का आतिथ्य स्वीकार करते
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।। लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।भूषन
प्रभु प्रसाद सूचि सुभग सुबासा।सादर जासु लहइ नित नासा।। तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं।प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं।। सीस नवहिं सुर
सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी।माधव सरिस मीतु हितकारी।। चारि पदारथ भरा भँडारु।पुन्य प्रदेस देस अति चारु।। छेत्रु अगम गढु गाड़
।। नमो राघवाय ।। आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू।आजु सुफल जप जोग बिरागू।। सफल सकल सुभ साधन साजू।राम तुम्हहि अवलोकत